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गरीबों को चुनावी रिश्वत

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Thursday, 28 March 2019


चुनावो का दौर चल रहा है और तमाम राजनीतिक पार्टियां जनता को लुभाने के लिए नये -नये पैंतरे अपना  रही है । बड़ी - बड़ी चुनावी घोषणाएं हो रही है। कांग्रेस ने भी एक ऐसा ही ऐतिहासिक घोषणा किया है जिसमे  वह देश के  20 % सबसे ज्यादा गरीब परिवारों को सालाना 72000 रुपए देने का वादा कर रही है।

कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने कुछ दिनों पहले एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करके देश से कहा कि यदि उनकी पार्टी सत्ता में आई तो वो देश के 20 प्रतिशत गरीब परिवारों को सालाना 72000 रुपए देगी। जिसका लाभ 5 करोड़ परिवार और लगभग 25 करोड़ गरीब जनता को होगा। यह रकम 6000 - 6000 रुपये महीना करके उनके घर के महिला मुखिया के खाते में डाली जाएगी । यदि ऐसा होता है तो हम सभी को बड़ी प्रसन्ता होगी ।हमारे देश मे जो गरीबी की समस्या है वो कुछ हद तक कम हो सकेगी ।
हालांकि भोली भाली गरीब जनता इस योजना के बारे में सुनकर और लालच में आकर कांग्रेस को वोट तो दे देगी परन्तु क्या इस "न्याय" योजना से जमीनीस्तर पे जो गरीब है उनको सच में  न्याय मिलेगा । यदि भाविष्य में यह योजना लागू हुई तो उन गरीबो को फायदा होगा जो केवल कागज़ी फाइलों में गरीब है। असल में जो गरीब है, जो ऐसी किसी भी योजना के असली हकदार है उन तक ये सभी सुविधाएं नही पहुचेगी क्योकिं किसी भी सरकार के  पास सभी असल गरीबो के ठीक - ठीक आकड़े नही है। सरकार के पास वे ही आकड़े है जो गांव के सरपंच, कोटेदार, सिकरेट्री ने उन्हें मुहैया कराये है। मैने निजीतौर पर गांवों में ये देखा है कि जो असल गरीब है उनके पास न तो राशनकार्ड है और है भी तो पात्र गृहस्ति का जबकि वे अंत्योदय कार्ड के हकदार है । जिन लोगो का परिवार सम्पन्न है घर मे सरकारी नौकरी है वे लोग सरपंच से साठ-गांठ करके अंत्योदय कार्ड बनवाकर गरीबो का हक छीन रहे है।
मेंरे कहने का तातपर्य यह है कि चाहे सरकार कोई भी आये , गरीबो के हित मे जो योजनाए लानी है ले आये परन्तु सबसे पहले असल गरीबो की पहचान करें ,गरीबी के सटीक आकड़े जुटाये, बिचौलियों को पकड़े उनपर कार्यवाही करें।
अश्वनी विश्वकर्मा-

भाजपा-कांग्रेस के ट्विटर वॉर के बीच फंसे 'चौकीदार' का असल सच

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Monday, 18 March 2019


"मैं भी चौकीदार", "मैं भी चौकीदार, "मैं भी चौकीदार... माफ़ करिये मै चौकीदार नही हूं लेकिन आजकल सोशल मीडिया पर हमारे मंत्री से लेकर प्रधानमंत्री तक चौकीदार जरूर बन गए है।ज़्यादा चकित होने की जरूरत नही क्योंकि पिछले चुनाव में यही 'चायवाले' थे जो अब अपग्रेड होकर चौकीदार बन गए हैं।एक बात मै स्पष्ट करना चाहता हूं - मै ना तो 'एंटी-बीजेपी' हूं और न ही 'एंटी-कांग्रेस'।कौन सी राजनीतिक पार्टी या कौन सा नेता कितना सक्षम है यह अपना व्यक्तिगत सोच-विचार होता है।हालांकि ये चलन 'कमल' का है माफ़ कीजिये 'कमाल' का है क्योंकी इसके ज़्यादातर शिकार हमारे युवा है जो अपने नाम के आगे 'चौकीदार' जोड़ कर राजनैतिक शिकार हो रहे हैं।खैर, यदि आपने भी अपने नाम के आगे 'चौकीदार' जोड़ रखा है तो आइये इस चुनाव में इसे एक मुद्दा बना कर एक लड़ाई उन असल चौकीदारों के लिए भी लड़ें जिनकी सैलरी कम होने के साथ ही लाइफ सिक्योरिटी ना के बराबर होती है। इससे पहले भी हमारे सहयोगी मित्र ने इसे लेकर एक पोस्ट डाला था लेकिन अब ऐसा लगता है इसे एक मुद्दा बनाने की जरूरत है ताकि कम से कम इस चुनाव इनका भला हो जाये।आखिर चौकीदार बनना इतना आसान कब से हो गया यह सोचने वाली बात है क्योंकि चौकीदार वह है जो 10,000 रूपये की सैलेरी पाता है और पूरी रात ईमानदारी से ड्यूटी करता है।दुर्भाग्य से यदि कोई दुर्घटना घटित होती है तो इनके परिवार की सिक्योरिटी को लेकर कोई प्रबंध नही होता है।शायद अब और अधिक स्पष्ट करने की जरूरत नही की एक चौकीदार की जिंदगी कैसी होती है।आपको यह भी समझने की जरूरत है, किसी भी टैगलाइन या स्लोगन का इस्तेमाल केवल कस्टमर या लोगों को लॉयल बनाने के लिए किया जाता है ऐसे में "मै भी हूं चौकीदार" या "चौकीदार ही चोर है" एक राजनीतिक टूल है जो लोगों को उनकी तरफ आकर्षित करने के काम आ रहा है।असल चौकीदार की हालत तो वैसे भी इस देश में ठीक नही है तो आखिर किस अधार पर हमारे नेताजी खुद को चौकीदार बोल रहे है।अगर चौकीदारों से इतना ही लगाव है तो उनके वेतन और सुरक्षा को लेकर कोई ठोस कदम क्यों नही उठाते।
Yash Pradeep-
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